Sunday 11 November 2012
Sunday 21 October 2012
Maayaa
माया
आँख मिचौली अब मत खेलो
अब मैं तुमको जान गया हूँ
तुम दुनिया को चकमा देती
मैं तुमको पहचान गया हूँ
कभी इधर तो कभी उधर
नहीं तुम्हारा कोई ठिकाना
सब हैं तेरे पीछे पागल
तुमने किसको अपना जाना
धर के रूप रंग अनेक
कर देती कैसा पागल
सुध बुध खो देते सब
हो जाते बेचारे घायल
कैसा रचा अनोखा तुमने
लालच का षड्यंत्र
बिरले योगी हैं ऐसे
जो साधे तेरा मंत्र ...
Saturday 13 October 2012
Aag jalni chahiye
A poetry by famous Hindi poet Dushyant Kumar...
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)
Tuesday 9 October 2012
Maanavta (Humanity)
सिसक रही मानवता कैसे
देखो सड़क किनारे बैठ
आगे बढ़ जाते लोग
उसको वितृष्णा से देख
समय नहीं किसी के पास
जाके पूछे उसका हाल
कल तक थी जो हृदय में
पड़ी उपेक्षित आज बेहाल
घूर रहा उसे स्वार्थ
बैठा है लगाये घात
हो गयी मलिन मानवता
सह स्वार्थ के क्रूर आघात
धर दबोचा मानवता को
तभी आ इर्ष्या ने
गड़ा दिए विषदंत नुकीले
कोमल उसकी ग्रीवा में
बह चली धारा रक्त की
लगी तड़पने मानवता
सोच रही पड़ी असहाय
हाय काल की विषमता....
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